‘भट्टी’ ले जाते साथ तो जाग जाते विक्रम और रोवर! NASA और रूस भी कर चुके इस्तेमाल…

भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो का बनाया चंद्रयान-3 इस वक्त चांद के दक्षिणि ध्रुव पर मजबूती से खड़ा है।

लैंडिंग के शुरुआती 14 दिन तो यान के विक्रम लैंडर और रोवर पूरी ताकत के साथ चांद पर खोजबीन में जुटे रहे लेकिन, रात के बाद अब जब सवेरा हो चुका है, विक्रम और रोवर निष्क्रिय पड़े हैं।

हालांकि इसरो के वैज्ञानिकों का दावा है कि उनकी कोशिश आगामी 6 अक्टूबर तक जारी रहेगी। आशंका है कि रोवर के उपकरण रात की -200 डिग्री वाली ठंड में काम करना बंद कर चुके हैं।

पूरी दुनिया इस वक्त विक्रम और रोवर के जागने का इंतजार कर रहे हैं ताकि वे एक बार फिर चांद पर घूमे और जीवन की तलाश में नई खोज करते रहें।

अब ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या यान के साथ ‘भट्टी’ साथ भेजी जाती तो विक्रम और रोवर जाग जाते! इससे पहले नासा और रूसी एजेंसी रोस्कोस्मोस भी इसका इस्तेमाल कर चुके हैं। 

22 सितंबर को चांद पर सूर्योदय के बाद से इसरो की टीम लगातार विक्रम और रोवर को जगाने की कोशिश कर रही है।

लेकिन, समय के साथ रोवर के फिर सक्रिय होने की उम्मीद धूमिल होती जा रही है। सवाल यह है क्या अगर ‘भट्टी’ को यान के साथ भेजा जाता तो रोवर काम करने लगता! 

हम जिस ‘भट्टी’ की बात कर रहे हैं, उसे रोडियोआइसोटोप थर्मो इलेक्ट्रिक जनरेटर या आरटीजी कहते हैं। चलिए जानते हैं यह क्या उपकरण है और किस तरह इस्तेमाल किया जाता है, इसके फायदे क्या हैं? रूस ने 1970 में पहले चंद्र मिशन में इसका इस्तेमाल किया था। जिसकी बदौलत 10 महीने तक उनका रोवर काम करता रहा।

क्या है रेडियो आइसोटोप हीटर
रेडियोआइसोटोप हीटर यूनिट एक छोटा उपकरण होता है जिसे अंतरिक्ष यान के अंदर फिट करके मिशन में भेजा जाता है। यह रेडियोधर्मी उपकरण अंतरिक्ष में उपकरणों को गर्मी देता है।

ये छोटे रेडियोआइसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जेनरेटर (आरटीजी) के समान हैं। इसके एक उपकरण से कई दशकों तक उपकरण को गर्मी दी जा सकती है।

इसके एक किलो प्लूटोनियम से 80 लाख किलोवाट बिजली पैदा की जा सकती है। आरटीजी में कोई चलायमान हिस्सा नहीं होता, इसलिए इसमें सर्विसिंग की जरूरत नहीं होती।

अंतरिक्ष यान में, आरएचयू का उपयोग अंतरिक्ष, किसी और ग्रह या उपग्रह पर उपकरण को गर्मी देने के लिए किया जाता है। यह अंतरिक्ष यान के अन्य हिस्सों के तापमान से बहुत भिन्न हो सकता है।

अंतरिक्ष के वातारण में यान का कोई भी हिस्सा जिस पर सीधी धूप नहीं पड़ती, वह इतना ठंडा हो जाता है कि इलेक्ट्रॉनिक्स या नाजुक वैज्ञानिक उपकरण टूटने का खतरा हो, तब ये इलेक्ट्रिक हीटर उन्हें गर्म रखने के अन्य तरीकों की तुलना में सरल और अधिक विश्वसनीय माने जाते हैं।

नासा, रूस और चीन भी कर चुके इस्तेमाल
रेडियोआइसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर यानी आरटीजी वह उपकरण है, जिसका इस्तेमाल अमेरिका की नासा और रूस की अंतरिक्ष एजेंसी कई बार कर चुकी हैं।

अमेरिकी अंतरिक्ष मिशनों पर उपयोग किए जाने वाले रेडियोआइसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर (आरटीजी) का एक विशिष्ट डिजाइन है।

नासा जीपीएचएस-आरटीजी का इस्तेमाल यूलिसिस (1), गैलीलियो (2), कैसिनी-ह्यूजेंस (3), और न्यू होराइजन्स (1) मिशन पर कर चुका है।

रूस की रोस्कोस्मोस अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस 17 नवंबर 1970 को चांद पर रोवर उतारने वाला पहला देश बना था। लूना-1 नाम इस अंतरिक्ष यान ने 10 महीने में चांद की सतह पर 10 किलोमीटर की यात्रा तय की। चांद पर क्योंकि धरती के 14 दिनों के बराबर रात होती है और उस दौरान चांद का तापमान -200 डिग्री तक चला जाता है।

ऐसे में रात के वक्त उपकरणों के खराब होने का खतरा रहता है। ऐसे में रूस ने पोलोनियम रोडियोआइसोटोप हीटर की मदद से रोवर को गर्म रखा। चीन ने भी 2013 में चांगई-3 लैंडर और युतु रोवर भेजा था। उसमें भी हीटर डिवाइस लगाई थी। 

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